पिछले
2,3 दिनों के खबर पर अगर नजर डाले तो सलमान खान ही दिख रहें है। मिजोरम के एनआईटी
कॉलेज में एक छात्र की जान कॉलेज के खराब खाने से चली गयी, वहा के छात्र इस पर
धरने पर बैठे है। इसकी खबर कितनों ने दिखाई। किसानों को उनके आलु के दाम ठीक से
नहीं मिल पा रहे कहां पढ़ लिया आपने। पेट्रोल के दाम कई जगहों पर 80 के पार चले
गये, इस पर कितने बहस सुन लिए या लेख पढ़ लिए।
जो गलती
हमने श्री देवी जी के देहांत को कवर करने में की, वहीं गलती आज फिर दोहरा रहे है।
क्या सलमान एक आम इंसान की तरह जेल में रहने पर अपने आने वाली फिल्मों में वही
एक्शन और स्टाइल नहीं दोहरा पाएंगे। मैनें पहले भी लिखा है और आज भी लिख रहा हु।
मीडिया से ज्यादा इसमें हमारी गलती है, हम देखते ही क्युं है ऐसी खबरों को। क्यों
जरुरी है ये जानना कि सलमान जेल में कैसे बाथरुम का प्रयोग कर रहे हैं।
हमें
फर्क इस बात से पड़ना चाहिए कि संसंद का काम इतना कम क्यों हुआ है। एक न्युज
पोर्टल के मुताबिक पिछले 18 सालों में सबसे कम काम इसी बजट सत्र में हुआ है। “पीआरएस लेजिस्लेटिव
रिर्सच” (जो
विधायी कार्यों के सोध से जुड़ी संस्था है) ने बताया कि दो चरणों में संपन्न हुये समूचे
बजट में लोकसभा में सिर्फ 23 प्रतिशत और राज्यसभा में मात्र 28 प्रतिशत कामकाज हो
पाया है।
हमारा
नुकसान संसंद में ना काम होने से है, ना कि सलमान के जेल में नाश्ता न करने से। ये
बात हमें खुद ही समझनी पड़ेगी की टीवी, अखबार या वेबसाइट्स पर हमारी क्या
प्राथमिकता होनी चाहिए। जब हम अच्छी खबरों को अपनी प्राथमिकता बनाएंगे तभी मीडिया कंपनीज
भी इनको अपनी प्राथमिकता बनाएगी। जब तक आप बकवास देखते रहेंगें वो दिखाते रहेंगें।
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