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क्या देश के हालात 2019 की तैयारी के लिए बनाए गये है?

2014 में जब बीजेपी की ऐतिहासिक सरकार बनी, देश ने एक बदलाव की उम्मीद की थी लेकिन तब ये किसी को नहीं पता था कि ये बदलाव देश की शांति और समानता से खिलवाड़ करेगी। हालांकि देश के बुद्धिजीवी व्यकितयों ने इस कल की कल्पना पहले ही कर दी थी। क्या आपको कोई बदलाव नजर आता है अगर नहीं आता तो जाकर उनलोगों से पुछ लीजिये जिनके परिवार के सदस्यों ने दंगे-फसाद या सांप्रदायिक हिंसे मे जान गवाई है। ये तो आपको भी साफ दिख रहा होगा कि पिछले कुछ सालों में सांप्रदायिक हिंसा और दंगो में कितना इजाफा हुआ है।
एक किस्सा बताता हुँ आपको, पहले मुझे एक नेता बहुत पसंद थे। पसंद इसलिए थे क्योंकि जब भी न्युज देखता था इनको या इनके बारे में ही देख पाता था। न्युज वालों ने मेरे दिमाग में इस नेता की इतनी तारीफ की, देखते ही देखते मैं इनका फैन बन गया। अगर कोई इस नेता के खिलाफ बोल दे, मुझसे रहा नहीं जाता था और मैं उस आलोचक से उलझ जाता था।
कुछ दिनों तक मैं ऐसा ही रहा लेकिन फिर पता चला कि मेरा उपयोग किया जा रहा है। मुझे अंधेरे मे रखा जा रहा था। मुझे ये बिलकुल मालुम नहीं था कि मै उनके राजनीतिक चंगुलों में फस गया था। फिर कुछ अच्छे लोगों से मिलने के बाद पता चला कि मुझे बदलना चाहिए। किसी नेता का फैन बन जाने पर आप उसकी कमियॉ नही देख पाते। समझ में आ गया कि अगर किसी खिलाड़ी या मुवी स्टार का फैन रहुँ तो ठीक है लेकिन नेता या राजनीतिक पार्टी का फैन नहीं बनना चाहिए खास कर जो सत्तारुढ पार्टी है। सरकार से सवाल पूछना चाहिये, उनकी नीतियों को समझ कर, अगर आलोचना योग्य है तो आलोचना करनी चाहिये।
पिछले कुछ महीनों में अनेक राजनैतिक पार्टियों के द्वारा देश के माहौल को बिगाड़ने की पूरी कोशिश की गयी है और वो सफल भी हुए है क्योंकि हमें आसानी से बेबकूफ बनाया जा सकता है। हमें आपस में लड़ा कर चुनाव जीत भी जाये तो क्या फायदा। जो विकास आने वाले पॉंच साल में होने वाला है वो नुकसान तो पॉच महीने में हो गया। अरे मै तो भूल ही गया हमारे देश में नेता देश के विकास के लिये नहीं अपनी निजी विकास के लिए चुनाव में खड़े होते है। फिर तो ठीक है आप हमें आपस में जाति और समुदाय के नाम पर लड़ाते रहिये, हम लड़ते रहेंगें, मरते रहेंगें और आपको फायदा पहुँचाते रहेंगें।

2019 मे होने वाले लोकसभा चुनाव के लिये तैयारी शुरु हो गयी है। जाति और समुदाय के नाम पर लोग बँटने लगे है और रेप जैसे जघन्य अपराध पर राजनीति शुरु हो गयी है। लोगों के विचार बदलने लगें हैं और देश के नुकसान में जाने-अनजाने में ही सही लेकिन भागीदारी देने लगे है। 

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