भारत की
राजधानी दिल्ली में लगभग 2 करोड़ लोग अधिकारिक तौर पर रहते है, पता नहीं और भी कितने
लोग (जो दुसरे शहरों से आते है) रहतें होंगे जिसकी जानकारी सरकार के पास नहीं है।
1,484 वर्ग किलोमीटर में फैली राजधानी दिल्ली में परिवहन विभाग के अनुसार 1,05,67,712
गाड़िया पंजीकृत है। जिनमें से 31,72,842 कार हैं और 66,48,730 मोटरसाईकल या स्कूटी
है। जरा सोचिए, इतनी छोटी सी दिल्ली में इतनी सारी गाड़िया है ।
प्रदूषण
के मामले में भारत की राजधानी कैसी है, ये किसी से छुपी नहीं है। आकड़ों को देखे
तो हर 7 इंसान पर एक कार है, और हर दुसरे आदमी के पास मोटर-साईकल या स्कूटर है।
इसमें कोई शक नहीं कि ये संख्या और बढेगी। ये तो हुई समस्या लेकिन इसका हल क्या
है। क्यों न ऑफिस जाने के लिए हम थोड़ी देर पहले निकले और साईकल का प्रयोग करें।
जब नीदरलैंडस के प्रधानमंत्री अपने काम के लिए साईकल का प्रयोग कर सकतें है तो हम
क्यों नही। साईकल के प्रयोग से ना सिर्फ हम पर्यावरण को बेहतर बना सकते है बल्कि अपने
सेहत को भी बेहतर कर सकते है।
कई देश है
जो साईकल से यात्रा करने के मामले में आगे है। नीदरलैंडस, कोपेनहेगन, एम्सटर्डम
समेत युरोप के कई और देश है जो ऑफिस जाने के लिए साईकल को अपना सहारा बनाते है। कितना
मुशकिल है ये हमारे लिए? बस
थोड़े से आधारिक संरचना को बदलने की जरुरत पड़ेगी। क्यों न ऐसा हो कि
जॉब करने वालों के कर्तव्यों में, आने-जाने के साधन के लिए साईकल अनिवार्य कर दिये
जाए, कुछ विशेष लोगो को छुट दे कर?
जिस
रफ्तार से जनसंख्या और प्रदुषण बढ़ रही है, आज न कल हमें ऐसे कदम उठाने ही पडेंगें
नही तो हमें ऑक्सीजन का स्लैंडर लेकर घुमना पडेगा। अपने आने वाले पीढ़ीयों से इसे
मजबुरन कराने से तो बेहतर है कि आज हम इसे आजादी से शुरु कर लें।
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