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सरकारी नौकरी तो नहीं मिलती, जब तोड़-फोड़ करने के पैसे मिले तो कौन मना करे..


शायद ये सही समय है कि एकबार फिर से पद्मावत के विवाद पर बात कर ली जाए क्योंकि अब कोई करनी सेना हमला नहीं करेगी। फिल्म रिलीज हुई और लोगों के साथ-साथ करनी सेना और उन राजपुतों को भी पंसंद आई जो फिल्म के विरोध में थे। कुछ विरोधीयों ने तो फिल्म को प्रोमोट भी किया।  
अब ये बताइए कि मुवी देखे बिना विरोध के रुप में जो लाखों का नुकसान किया गया उसकी भरपाई कौन करेगा। संजय लीला भंसाली के पैसे की भरपाई तो लोगों ने फिल्म देखकर कर दी। उस नुकसान का क्या जो आम जनता के टैक्स से बनी सरकारी संप्तति का हुआ, क्या इसकी भरपाई के लिए करनी सेना और वो चुनिंदा राजपुत सामने आएंगे, जो क्रमठ होकर तोड़-फोड़ कर रहे थे।
नुकसान करने वाले भी दो तरह के लोग होतें है। एक जिनकी भावनाऔं को वाकई में ठेस पहुचती है, जो ये नहीं समझ पाते कि वो अपना ही नुकसान कर रहें है और अपनी बात मनवाने के लिए हिंसा पर उतर आते है जो बिलकुल भी समस्या का समाधान नहीं है। दुसरे वो लोग होते है जो या तो किराये पर लाए जाते है या ब्रेनव़ॉश कर लाए जाते है। ये जो दुसरे तरह वाले लोग है, इनका प्रयोग अलग-अलग कामों के लिए किया जाता है। चाहे वो चुनावी रैलीयों मे हो या नेताओं द्वारा फैलाए गये दंगे-फसाद में।
ज्यादातर ये दुसरे तरह वाले लोग नौजवान ही होतें है। अब बेचारे करे भी तो क्या करे, सरकार ने नौकरी तो दी नहीं तो दो-चार पैसे के लिए यही कर लेते है। किस राह पर ले जाए जा रहे ये नौजवान, जिन पर कल देश को आगे ले जाने की जिम्मेवारी होगीं। हमें पता नहीं लग रहा है लेकिन ये हमारा बड़ा नुकसान हो रहा है। चुनावी प्रोपेगेंडा के लिए किए जा रहे इन लड़को का उपयोग नहीं रोका गया तो जल्द ही भुचाल आ जाएगा।    

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