2010
में कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, 2जी घोटाला, कोयला घोटला, टैंकर घोटाला और कई घोटाले
समेत बढ़ते भ्रष्टाचार से परेशान होकर भारतवासियों ने 2014 के लोकसभा चुनाव में
कांग्रेस को हटाकर एनडीए की सरकार चुनी। देश के लोगों ने सोचा था कि कोई मोदी नाम
का मसीहा उनके देश को बेहतर बनाएगा। पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त हर जगह सिर्फ एक
ही आवाज गुंज रही थी वो थी देश के आने वाले प्रधानमंत्री की। भाजपा से ज्यादा देश
ने मोदी जी के नाम पर वोट दिए इस उम्मीद में की देश को बेरोजगारी, भुखमरी से आजादी
मिलेगी।
आज जबकि
भाजपा सरकार के पॉच साल पूरे होने को है क्या हमने खुद से यह सवाल किया कि जिस
राजनैतिक पार्टी को हमने पूरी उम्मीद से जिताया क्या उन्होनें हमारे उम्मीदों को
पूरा किया। अगर नहीं किया तो हमने उनसे उम्मीद ना पूरा करने पर कोई सवाल किया?
अगर कोई सरकार ये
कहकर बचना चाहती है कि आपने दूसरी पार्टी को 60 साल दिए, हमें भी कुछ और समय दीजीए
तो वो बहाना बना रहीं है क्योंकि उसने अपनी जिम्मेदारी अच्छे से नहीं निभाई।
अब
हमारी जिम्मेदारी ये बनती है कि हम सत्तारूढ़ सरकार से उनकी नाकामियों पर सवाल
उठाए, नाकि छोटी-छोटी और अधूरी उपलब्धियों पर वाह-वाही करें। सरकार या नेता के सुर
चुनाव के समय के हिसाब से बदलने लगते है और फिलहाल कुछ ऐसा ही हो रहा है। लोकसभा
चुनाव अब ज्यादा दूर नहीं है, ऐसे में अब आपको सोच लेना चाहिए कि किसके हाथ आप
सत्ता सौंपना चाहते है।
दरअसल
लोंग करें भी तो क्या करें दो ही तो बड़ी पार्टीयॉं है, एक जो सत्ता में है जिससे
लोग परेशान है, दुसरी वो पार्टी जिससे परेशान होकर अभी वाले को चुनने पर मजबूर हुए
थे। वो कहते है न एक तरफ कुऑ तो एक दुसरी तरफ खाई। फिलहाल बड़ा सवाल ये है कि इन
सब उलेझबुन के साथ आम जनता वोट किसे दे?
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